Chapter 6
भास्कर वर्मण
(क) अति लघु प्रश्न उत्तर :(1- mark)
1. भास्कर वर्मण कहांँ के राजा थे?
उत्तर: भास्कर वर्मण प्रगज्योतिषपुर के राजा थे।
2. स्थाणीश्वर के सम्राट कौन थे?
उत्तर: स्थाणीश्वर के सम्राट हर्षवर्धन थे।
3. हर्षवर्धन का सेनानायक कौन था?
उत्तर: हर्षवर्धन का सेनानायक सिंहनाद था।
4. प्रगज्योतिषपुर के अमात्य एवं राजदूत कौन थे?
उत्तर: प्रगज्योतिषपुर के अमात्य एवं राजदूत हंसवेग थे।
5. भास्कर वर्मण की मांँ का क्या नाम था?
उत्तर: भास्कर वर्मण की मांँ का नाम श्यामा था।
6. सम्राट हर्ष की विधवा बहन कौन थी?
उत्तर: सम्राट हर्ष की विधवा बहन राज्यश्री थी।
7. कंकु कौन थी?
उत्तर: कंकु भास्कर वर्मण के राजप्रासाद की दासी और युद्ध भूमि में भास्कर बरमन की संगिनी थी।
8. भास्कर वर्मण किस वंश के थे?
उत्तर: भास्कर वर्मण भगदत्त वंश के थे।
9. राज्यश्री के पति का क्या नाम था?
उत्तर: राज्यश्री के पति का नाम ग्रहवर्मा था।
10. किसने राजश्री को छलपूर्वक कैद किया था?
उत्तर: देवगुप्त ने राजेश्री को छलपूर्वक कैद किया था।
11. भास्कर वर्मण की किससे मित्रता थी?
उत्तर: हर्षवर्धन से।
12. चीनी धर्म यात्री कौन था?
उत्तर: चीनी धर्म यात्री श्युआन च्युआङ था।
13. तिब्बत के राजा का क्या नाम था?
उत्तर: तिब्बत के राजा का नाम गुम नोइ वांग था।
14. तिब्बत राज्य के राजदूत का नाम क्या था?
उत्तर: वांग हुएन त्से।
15. वह अश्वारोही धनुर्धर असल में कौन था?
उत्तर: वह अश्वारोही धनुर्धर असल में कंकु थी।
(ख) संक्षेप में उत्तर दो: (2 – marks)
1. किसने प्रतिहारियों को क्या काम सौंपा था?
उत्तर: महामात्य ने प्रतिभागियों को यह काम सौंप रखा था कि पुष्पहार को गूँथने वाली और अर्पित करने वाली हस्ती का पता लगाएं, जो हर बार प्रातः काल आकर हस्तिदंत पर पुष्पहार लटका जाती है।
2. भास्कर वर्मण क्यों विवाह नहीं करना चाहते थे?
उत्तर: भास्कर वर्मण अविवाहित रहने के लिए पिता से वचनबद्ध थे। उनका मानना था कि वह सम्राट नहीं प्रजा का सेवक है। उन्होंने राजदण्ड और मुकुट प्रजा के कल्याण के लिए धारण किया है। जब सब प्रजा चैन की नींद सोएंगे तभी वे अपने बारे में सोचेंगे। इस कारण भास्कर वर्मण विवाह नहीं करना चाहते थे।
3. निधानपुर से आए हुए घृति शर्मा ने भास्कर वर्मण से क्या कहाँ?
उत्तर: निधानपुर से आए हुए घृति शर्मा ने भास्कर वर्मण से कहाँ कि उनके पिताश्री ने 215 ब्राह्मण परिवारों को देवार्पित भूमि दान की थी। शशांक ने अब हमें वहांँ से उजाड़ दिया है।
4. भास्कर वर्मण क्यों काठ की चौकी पर बेंत की चटाई और कम्बल बिछाकर सोते थे?
उत्तर: भास्कर वर्मण काठ की चौकी पर बेंत की चटाई और कम्बल बिछाकर सोते थे क्योंकि उनका मानना था कि राज्य में कितने ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें बेंत की चटाई और कम्बल भी नसीब नहीं। वे जानना चाहते थे तथा अनुभव करना चाहते थे कि अभाव की पीड़ा कैसी होती है।
5. कंकु ने किस प्रकार भास्कर वर्मण की जान बचाई?
उत्तर: कंकु ने हर्षवर्धन और नौसैनिको को भास्कर का कुण्ड़ल भेजकर भास्कर की जान बचाई।
6. भास्कर वर्मण ने कहांँ से कहांँ तक की प्रजा को सुखी और समृद्ध बना नहीं पाने की बात कही है?
उत्तर: भास्कर ने चीन सीमांत से बंगोपसागर तक और हिमालय उपत्यका से मगध तक की प्रजा को सुखी और समृद्ध बना नहीं पाने की बात कही है।
7. शशांक के हाथी क्यों भड़क गए थे?
उत्तर: कामरूप के नौसैनिकों द्वारा तीर से फेंके जलती मसालों से आक्रांत शशांक के हाथी भड़क गए थे।
8. कंकु युद्ध क्षेत्र में अश्वारोही धनुर्धर सैनिक बनकर भास्कर से क्या कहती है?
उत्तर: कंकु भास्कर से कहती है कि “धीरे, महाराज कुमार धीरे…… यह आपकी व्यामशाला नहीं, शशांक के कर्ण-सुवर्ण का युद्ध क्षेत्र है।”
9. ‘मैं विषकन्या बन चुकी हूंँ- मेरा जूठा दूध पीकर कोई भी मर सकता है।’- यह कथन किसने किसको कहा था?
उत्तर: यह कथन कंकु का है। कंकु ने यह वाक्य राज्यश्री से कहा था।
10. भारत की नदियों की क्या विशेषताएंँ हैं?
उत्तर: भौगोलिक दृष्टिकोण से हमारे देश की सारी नदियांँ पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है जो प्रकृति की धरोहर है एवं इसकी घटियाँ काफी उपजाऊ है। यह नदियांँ हमारे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है।
(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो: (4 – नंबर)
1. ‘शत्रु का शत्रु मित्र होता है’-स्पष्ट करो?
उत्तर: यह प्रसंग कुमार भास्कर वर्मण के सभासदन की बैठक में महामात्य ने प्रस्तुत किया था। महामात्य का ऐसा कहने के पीछे उद्देश्य यह था कि शशांक भास्कर वर्मण का भी शत्रु था और हर्षवर्धन का भी। इस नाते शत्रु का शत्रु मित्र हुआ। इसलिए भास्कर को हर्ष के साथ मित्रता करने में आपत्ती नहीं होनी चाहिए। महामात्य की इस सूझ-बुझ की नीति से भास्कर प्रभावित हुए और शशांक से प्रतिशोध लेने का सुअवसर देख हर्षवर्धन को अपनी ओर से मित्रता का संदेश भेजा।
2. ‘भास्कर धनुष का छूटा तीर है- जो लक्ष्य तक पहुंँचकर ही रूकता है।’ आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: युद्ध के दौरान भास्कर वर्मण शशांक की सेना को मध्य भाग से काफी पीछे ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। उसी समय अस्वारोही धनुर्धर के वेश में कंकु भास्कर वर्मण के पास आकर सचेत करती है कि यह उनका व्यामशाला नहीं बल्कि शशांक का करण-स्वर्ण का युद्ध क्षेत्र है। वह और आगे न बढ़े अन्यथा अनर्थ हो जाएगा। इस उक्ति का उत्तर देते हुए भास्कर कहते हैं कि वे एक धनु से छूटा तीर है, जो लक्ष्य तक पहुंँच कर ही रुकता है। अर्थात उन्हें किसी प्रकार का न तो भय था न ही अपने आप की फिक्र। उनके आगे एक ही लक्ष्य था शशांक का पतन। चाहे इसके लिए उन्हें जो भी परिणाम भुगतना पड़े वे युद्ध लड़ते जाएंगे।
3. किस प्रकार कुण्डल के संकेत से भास्कर की जान बची?
उत्तर: जब भास्कर वर्मण युद्ध के मैदान में अपने हाथी पर से कूदकर रंगमंच पर आकर युद्ध करते-करते शत्रुओं से घिर जाते हैं, तब कंकु सैनिक वेश में धनुर्धर बनकर आती है और अपने सैनिकों को सहायता का संकेत दिलाने हेतु दो तीरों में कुंण्डल लगाकर एक तीर हर्षवर्धन की पताका स्तंभ की ओर मारती है जिससे कुंण्डल हर्ष की गोद में जा गिरती है। वैसे ही दूसरा तीर भास्कर वर्मण के नौ-सैनिकों की ओर मारती है। जिससे दोनों को ज्ञात हो जाता है कि भास्कर को सहायता की जरूरत है और वे शीघ्र बचाने आ जाते हैं। अतः इस प्रकार कंकु की सूझ-बूज और कुंण्डल के संकेतों के कारण ही भास्कर की जान बची।
(ग) ‘भास्कर वर्मण’ नाटक के आधार पर भास्कर वर्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर: डॉ हीरालाल द्वारा रचित ‘भास्कर वर्मण’ एक ऐतिहासिक नाटक है। भास्कर वर्मण ही इस नाटक के नायक है। ऐतिहासिक परिवेश में महाराज कुमार भास्कर वर्मण को नायक बनाकर उनके उज्जवल चरित्र के माध्यम से भारत के अतीत गरिमा का दर्शन कराया है।
ऐतिहासिक नाटक के अनुसार भास्कर वर्मन कामरूप के राजा थे। उन्होंने हमेशा ही कामरूप राज्य को भारत देश का अभिन्न अंग माना है। उनका अपने राज्य के प्रति प्रेम और एक साधारण प्रजा की तरह जीवन निर्वाह करना, देखकर ही बनता है। समस्त नाटक के दौरान उनका व्यक्तित्व फूट-फूट के ऊपर के सामने आया है। तथा विषय वस्तु के आधार पर भास्कर वर्मण की चारित्रिक विशेषताओं को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर चर्चा करेंगे-
(i) साधारण जीवन शैली:- भास्कर वर्मण कामरूप के राजा होने के बावजूद उनका रहन-सहन, खान-पान सब साधारण व्यक्ति की तरह ही था। प्रजा की तरह वस्त्र धारण करते थे। कभी-कभी सैनिक को भी पता नहीं होता कि उनके बीच भास्कर वर्मण बैठा है। यहांँ तक कि उनके साथ ही भोजन करते दिखाई देते।
(ii) अपने राज्य के प्रति प्यार:- भास्कर वर्मण अपने राज्य के लोगों से बहुत प्यार करते थे। उन्हें हमेशा अपनी प्रजा के प्रति चिंता रहती थी। उनकी पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती थी। इस कारण उन्होंने साधारण जीवन शैली अपनाई, यहांँ तक कि वे चटाई पर सोते थे वह भी बिना कंम्बल और गद्दे के। नाटक के द्वितीय अंक में भास्कर वर्मण ने खुद इसका जिक्र भी किया है कि- “कितने हैं जिन्हें बेंत की चटाई और कंम्बल भी नहीं मिलता…. मैं जानना चाहता था अनुभव करना चाहता था अभाव की पीड़ा को।”
(iii) एकता और शांति पर विश्वास:- भास्कर वर्मण एकता पर विश्वास करते थे। तत्कालीन समय में भारत अनेक राज्यों में बटा हुआ था। वह आपस में लड़ते झगड़ते थे। देश में कोई भी ऐसा सशक्त राजा नहीं था जो संपूर्ण राज्यों को एक सूत्र में बांध सकें। वे समस्त भारत को एक मानते थे। राज्यों के राजाओं को एकता का पाठ पढ़ाना उनका लक्ष्य था। वह अनेकता में एकता के सपने देखते थे। इस प्रसंग में उन्होंने कहा भी है की- “हमने अनेकता में एकता के सपने ही नहीं देखे, उन्हें साकार भी किया है।…आम, अमरूद, गुड, शहद…. सभी मीठे हैं किंतु एक नहीं- सबका अस्तित्व पृथक है किंतु स्वाद मीठा है।”
(iv) पराक्रमी योद्धा:- भास्कर वर्मण शांति के प्रतीक थे तो युद्ध के क्षेत्र में पराक्रमी वीर भी थे। उनके वीरता का गुणगान चारों और प्रचलित था। लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि उनमें 60 हजार हाथी का बल है। वास्तव में भी युद्ध के मैदान में भास्कर की वीरता की झलक दिखाई देती है। जब कंकु से भास्कर स्वयं अपने शौर्य का डंका पीटने हुए कहता हैं -“प्रगल्भ युवक! तू लौट जा। भास्कर धनुष से छूटा तीर है जो लक्ष्य तक पहुंँचकर ही रहता है।”
(v) न्यायप्रियता:- अर्जुन द्वारा जब तिब्बत के राज दूध को अपमानित किया गया तब तिब्बत के राजा ने प्रतिशोध लेना चाहा। अर्जुन ने अपमानित करके गलती की थी। अर्जुन भास्कर का अपना जन था, तथापि उसका अपराध क्षमा करना उन्होंने उचित न माना और उन्होंने खुद उसे दण्ड देने की बात कही। न्याय राजा न्याय दिलाते वक्त सगा संबंधी नहीं देखते, चाहे कोई भी हो। भास्कर की इस बात से उनकी न्यायप्रियता सिद्ध होती है।
(vi) वचनबद्धता निर्वाह:- भास्कर वर्मण एक वचनबद्ध व्यक्ति भी था। वह अपने पिता से वचनबद्ध था कि वह कभी वैवाहिक बंधन में नहीं बंधेगा। जिसका पालन भास्कर ने आजीवन निभाया। कंकु जैसी रूप लावण्य पर वह मुग्ध होते हुए भी उसने अपने चित्र को वनिता-सौंदर्य-लोलुपता से मुक्त रखा।
(vii) नारी के प्रति सम्मान:- भास्कर नारी को सम्मान एवं आदर करते थे। नाटक में अपनी मांँ के प्रति ममता, कंकु के प्रति स्नेह तथा राज्यश्री के प्रति भाईचारे को देखकर ही बनता है कि भास्कर नारी को कितना सम्मान और आदर देता था।
उपयुक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भास्कर वर्मण एक पराक्रमी योद्धा, न्यायप्रियता, शांतिप्रिय, प्रजाप्रेमी और नारी को सम्मान देने वाला एक ऐतिहासिक महापुरुष था।