1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर: रस्सी यहाँ नाव के लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कच्चे धागे की हैं।
2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए जाने वाले प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं क्योंकि जो नाव वह खींच रही थी। वह नाव कच्चे धागे की हैं।
3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: घर जाने की चाह’ का तात्पर्य है-इस भवसागर से मुक्ति पाकर अपने प्रभु की शरण में जाना। वह परमात्मा की शरण को ही अपना वास्तविक घर मानती है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
उत्तर: इस वाक्य का भाव यह है कि कवयित्री इस संसार में आकर सांसारिकता में उलझकर रह गयी और जब अंत समय आया और जेब टटोली तो कुछ भी हासिल न हुआ। लेखिका ने प्रभु के पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परंतु उससे इस राह से ईश्वर नही मिला।
(ख) खा- खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर: इस वाक्य का भाव यह है कि- कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में दुबकर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए उचित मार्ग अपनाने को कह रही है। मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है।
5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवि ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप सच्चे मायने में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच से मोहभंग करना होगा। और भगवान का नाम लेना होगा।
6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर: ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव व्यक्त हुआ है इन पंक्तियों में जो हैं- आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जान लिया हो।