Chapter 7
रैदास (पद)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर: पहले पद में भगवान को चंदन, घन बन, दीपक, मोती, और स्वामी और भक्त को पानी, मोरा, बाती, धागा, और दासा से तुलना कीई हैं।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे- पानी, समानी आदि। इस पद में तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर: पहले पद में जो तुकांत शब्द हैं वो हैं- पानी-समानी, मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण : दीपक बाती
उत्तर:
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: दूसरे पद में कवि ने गरीब निवाजु ईश्वर को कहा हैं।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै, इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जाकी छोति जगत कउ लोगै ता पर तुहीं दरै, इस पंक्ति का आशय का अर्थ हैं कि- अमीर लोग कभी गरीब लोगों को अपना नही मानतें, उनके साथ बात तक नही करना चाहते। लेकिन भगवान कभी भेदभाव नही करतें। वह लोगों में अमीर गरीब नही देखते , सिर्फ अच्छा-बुरा देखते हैं।
(च) ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन- किन नामों से पुकारा है?
उत्तर: रैदास ने अपने स्वामी को गुसईया, गरीब, निवाजु, लाल, गोबिंद, हरि, प्रभु आदि नामों से पुकारा हैं।
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप लिखिए-
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुम्हीं, गुसईआ
उत्तर:
2. नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जाकी अँग-अँग बास समानी
उत्तर: इस पंक्ति का भाव यह हैं कि- भक्त और ईश्वर इतने पास आ जाते हैं कि भक्त के तन-मन में भक्ति का भाव प्रवेश कर लेता है। ईश्वर की भक्ति से उसका दिल प्रसन्नता से भर जाता है। इस पंक्ति में भी कवि के दिल में प्रभु के बसने की बात कह रहा है। भक्त के अंग-अंग में प्रभु की भक्ति की खुषबु उसके जीवन को महका देने में सहायक है।
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
उत्तर: इस पंक्ति का भाव यह हैं कि- चकोरा दिन-रात चांद को निहारते रहना चाहता हैं, ठीक उसी प्रकार रैदास क्षण भर भी प्रभु की भक्ति से अपना मन नहीं हटाना चाहता। इस वजह से वह प्रभु को चंद और खुद को चकोर कह रहा है, जो हमेशा प्रभु को निहारते रहना चाहता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रभु बिना भक्त का जीवन कितना अधूरा है।
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
उत्तर: भगवान यदि एक दीपक हैं तो भक्त उस बाती की तरह है जो प्रकाश देने के लिए दिन रात जलती रहती है।
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
उत्तर: इस वाक्य का अर्थ हैं कि- प्रभु के बिना कोई ऐसा कृपालु नही जो भक्त के लिए इतना बडा कार्य कर सकता है । तुम गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हो । तुम ही ऐसा कृपालु स्वामी हो जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया ।
(ङ) नीचहु उच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर: नीचहु उच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
इस आशय का अर्थ है कि- हमें ईश्वर के बिना किसीसे डरना नही चाहिए। हमें कभी कभी दुष्ट लोंगो को भी उची पदवी प्रदान करनी पर सकती हैं। गरीबो का दुख दर्द सिर्फ भगवान समझते हैं। वह गरीबो का दुख दर्द दुर करेंगे।
3. रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव यह हैं कि- वे उनके प्रभु के अनन्य भक्त हैं। वे अपने ईश्वर से कुछ इस प्रकार से घुलमिल गए हैं कि उन्हें अपने प्रभु से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। दूसरा पद – रैदास के दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि उसके प्रभु सर्वगुण संपन्न, दयालु और समदर्शी हैं।